सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

रावण का प्रतीक 'दशहरा ।

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  द   श  ह   र   ।   र   ।   व    ण
रावण जैसा महामानव वलबान  और बुद्धीमान पुरुष कोई दुशरा पैदा नही हूआ ।और शायद  आगे होग भी नही ।रावण  उस युग का सर्व संपन्न राजा था । उसके पास सोने का महल  और वायूयान (पुष्पक )था ।उस समय रावण ने लंका मे जो विकाश किया उसके निशान  आज भी श्रीलंका मे है ।वहा एक भव्य मंदिर है शिव का जो रावण ने ही बनबाया था । महापंडित रावण राजनीती मे भी बहुत निपुण था ।रावण  एक वीर योद्धा था वीरो की यही पहचान है की वह झुकते नही है भले ही टूट जाए । रावण ने 'रावण सहिता 'नामक ग्रंथ  की रचना की थी  जो आज भी है ।रावण भविष्य ज्ञाता भी था जो उसके साथ हुआ वह सब  उसने पहले ही जान लिया था ।पर  उसके पास राम से युद्ध करने के अलावा और कोई विकल्प नही था अगर रावण  अन्य कोई विकल्प  अपनाता तो आज भारत मे दशहरा नही मनाया जाता ।  बुराई पर  अच्छाई की जीत का त्योहार दशहरा राम के साथ रावण की भी याद दिलाता है ।रावण भले ही बुराई का पात्र है । पर  उसके बिना रामायण अधूरी है । रावण गलत नही था वह  अलग था ।
दशहरा का मतलव है दस + सहरे यानी की दस सिर ' पर  इसका यह मतलव नही है की रावण के दस शिर थे ।नही इसका अर्थ है की दस बुद्धिमान  आदमीयों के बराबर ज्ञान रावण के एक ही सिर मे था ।यह दस सिर वाले रावण के चित्र यही समझाने के लिए उदाहरण है ।पर लोगो ने लकीर का फकीर बना दिया । हाँ यह हो सकता है की रावण मायावी था और  उसने कभी एकाध बार माया से अपना दस सिर बाला रूप बनाया होगा । पर वास्तविक सिर तो रावण का एक ही था ।
पर यह सच है की रावण का शरीर बहुत विशाल था ।एसा होना सोभाविक है । क्योंकि उस युग मे मनुष्यों के शरीर भी पूरे विकशित होते थे 'उस समय के इतिहास मे कही कही यह प्रमाण मिलते है की उस युग मे लोग 20 फिट तक लवे कद को होते थे ।और फिर रावण तो माशाहारी था तो उसका शरीर तो विशाल होगा ही । उस युग मे मनुष्यों की आयू भी बहुत लंबी होती थी हजार साल तक भी आदमी जीता था । पर  आज तक  अमर कोई भी नही हुआ रावण भी नही । जो पैदा होता है उसका मरना भी पक्का होता है ।

नं.1एंकर नीलम शर्मा ।

नीलम शर्मा📺
डी डी न्यूज चैनल की एंकर नीलम शर्मा ' जो की एक वरिष्ठ समाचार वाचक  और प्रस्तुतकर्ता है । वह डी डी न्यूज पर सन1995 से कार्यरत है ।उन्हें सन 2010 मे महिलाओ की एक संस्था ' आधी आवादी ' ने 'वूमन  एचीवर्स अवार्ड ' से सम्मानित किया है । नीलम  एक कुशल समाचार वाचक है उनकी साफ दमदार  आवाज लोगो को बहुत भाती है ।नीलम को अपने 21 साल के कार्यकाल मे कभी भी न्यूज चैनल पर कुर्ती सलवार मे नही देखा गया ' वह हमेशा भारत के पारंपरिक लिवाज साडी ब्लाऊज मे नजर  आती है ' माथे पर बिंदी गले मे मंगलसूत्र यही उनकी पहचान है । नीलम  अपने अलग  अदाज़ मे समाचार वाचन या इंटरव्यू लेती देखी जाती है । कार्यक्रम ' चर्चा मे ' को लेकर नीलम बहुत लोकप्रिय है । उनकी लोकप्रिता को देखते हुए उन्हें नं. वन  एंकर कहना शायद गलत नही होगा ।
नीलम शर्मा  डी डी न्यूज चैनल की पहचान है ।

चीनी धर्म ताओ और लाओत्से ।

चीन के त्चयु प्रदेश मे 605ईशा पूर्व लाओत्से नाम के आदमी का जन्म हुआ था । वह  एक सरकरी लाइब्रेरी मे काम करता था 'जहाँ उसने 40 साल तक काम किया । लाओत्से अपने जीवन मे बहुत ही कम बोला वह मोन जादा रहता था । कृष्ण और राम की ही तरह महाज्ञानी था लाओत्से पर  उसके पीछे कोई बडा धर्म नही बना क्योंकि उसका संदेश बहुत अलग है । लाओत्से कहता है _मे उसका नाम नही जानता 'वह 'तत'है उसे पाने के लिए कुछ करना नही है वस शून्य हो जाना है । लाओत्से पिंगलो पहाड पर जाना चाहता था अपने आप को बरफ मे गलाने के लिए पर लोग  उसे नही जाने देते थे । बताया गया है की एक यात्रा के दैरान जव लाओत्से 'क्वानयिन' के एक चुंगी नाके से गुजर रहा था तब वहां के अधिकारी ने उसे रोका और कर देने को कहा तो लाओत्से ने कहा की मेरे पास पैसे तो है नही ' लेकिन  अधिकारी ने कहा नही एसे नही जाने देगे कुछ ना कुछ तो दैना ही होगा । तब लाओत्से ने उस उस  अधिकारी को अपना ज्ञान दिया  जो उस  अधिकारी ने तीन दिन तक लिखा ' फिर लाओत्से को बासर जाने दिया।
उस  अधिकारी का नाम च्युंगत्सी था  जिसने लाओत्से के बोध बचनो को लिखा था । यह बोध बचन  आज चीन मे 'ताओ ते चिंग ' जो चीन के ताओ धर्म का ग्रंध है के  रूप मे उपलब्ध है ।इस किताव का पहल बोध बचन है की _ जिस रास्ते के बारे मे बात की जा सके वह रास्ता सनातन नही है ।ताओ पहले चीन का दर्शन था बाद मे धर्म बन गया । इसका सारा ईनाम  उस नाके के अधिकारी को देना चाहिए जिसने ज्ञान की इस संपत्ति को लुप्त होने से बचा लिया बरना आज कोई लाओत्से को नही जानता और न चीन मे ताओ धर्म होता और नाही ताओ ते चिग नाम की कोई किताव होती ।



                ताओ  ते   चिंग  और लाओत्से
 

सुर्खीयो मे 'तारिक फतेह ।

पिछले कुछ दिनो से पाकिस्तानी लेखक तारिक फतेह  भारत के न्यूज चैनलो पर नजर आ रहे है ।वह पाकिस्तान के खिलाफ आग  उगल रहे है ।और पाक की पोल खोलते हुए वहाँ के हुक्मरानो पर खूव व्यंग बॉण छोड रहे है । उनका कहना है की वह सच बोलते है ।उन्हें किसी का डर नही है । इन दिनो तारिक साहव भी मकबूल फादा हुसैन की तर्ज पर खूव सुरखी वटोर रहे है । वह बलूचिस्तान के पक्षधर है । उनके विचारो मे भारत के प्रति प्रेम है और पाकिस्तान के प्रति नफरत है । फतेह साहव नरेंद्र मोदी की बहुत तारीफ करते है ' वे लालवहादुर शास्त्री के भी फैन है । उन्हें पाक के बारे मे जो भी कहना होता है उसे बगेर लाग लपेट के दो टूक शब्दों मे कहते है ।
एक  इंटरव्यू के दोरान किसी ने तारिक से कहा की _क्या पाक मे छूपे दाऊद को घर मे घुस कर मारना चाहिए ? इसके  उत्तर मे तारिक फतेह ने कहा की आपको मारने की क्या जरूरत है ' वही के किसी आदमी को दस का नोट दो वह मार देगा । 67वर्षीय तारिक फतेह  इन दिनो भारत मे बतोर महमान है ।

तारिक फतेह  एक लेखक के रूप मे जाने जाते है । उनका जन्म पाकिस्तान के कराची शहर मे 1949 मे हुआ ।उन्होंने अपने जीवन का बहुत समय साऊदी अरब  और कनाडा मे विताया है । पाकिस्तान की व्यावस्था पर बिरोधी ब्यानो के लिए 'फतेह साहव  इस समय खूव फेमस हो रहै है ।वह बलोचिस्तान को भारत मे मिलाने पर भी जोर दे रहे है ' जो बिलकुल सही है । तारिक फतेह का हसमुख मिजाज  और  उनके क्रांतीकारी विचार लोगो को बहुत प्रभावित करते है ।सच्चाई को उजागर करने बाले एसे लोग बहुत कम होते है ।

रविवार, 9 अक्तूबर 2016

डिप्रेशन के शिकार लोग ।

इस शहर मे हर शख्स परेशान सा क्यों है ।

बच्चे संसार का भविष्य ।

बच्चे प्यारे क्यों होते है ?
बच्चे इंसानी हो या पशू पक्षियों के बच्चे सभी बच्चे बहुत प्यारे लगते है । पहले केवल नौ ही रस थे  बाद मे सूरदास ने  एक  और रस की खोज की ' वात्सल्य रस ' यह रस सूरदास को कृष्ण के बाल रूप से मिला था ।
बच्चे सभी को प्यारे होते है । मॉ बच्चों को सबसे जादा प्यार करती है ।इससे भी अधिक प्यार बच्चों को उनके दादा दादी करते है । यह कुदरत का नियम है संसार चलाने के लिए ।जब जहाँ जो जरूरत होती है उसका पूरा इंतजाम कुदरती होता है । बच्चे के दुनिया मे आते ही माँ के स्तन मे उसके लिए दूध  आ जाता है । अगर बच्चो मे मोह ना होता तो दुनिया की कोई भी माँ अपने बच्चों को दूथ नही पिलाती और बच्चे पैदा होते ही मर जाया करते जिसके कारण संसार चलना कठिन था । इसलिए बच्चे ईश्वर का मोहनी रूप होते है ।क्योंकि बाल रूप मे बच्चे असहाय और  अवोध होते है ओर  उनहे इस समय संसार मे जीने के लिए सहारे की जरूरत होती है जो मोह बस माँ करती है । जव बच्चा कुछ बडा होता है तो उसे शिक्षा की जरूरत होती है वह सीखना चाहता है । इसलिए ही बच्चे दादा दादी से कहानी सूनाने की जिद करते है ।दादा दादी भी मोह बस बच्चों को कहानी के माध्यम से शिक्षा देते है । ओर  अपनी आप बीती बच्चों को सुनाते है । जो उन्होने जीवन मे सीखा अनुभव किया वह बच्चे को बताते है । दुनिया के अच्छे बुरे का ज्ञान कराते है ।
पर जैसे जैसे बच्चे बडे होते है उन पर सबका प्यार कम होता जाता है । चिडियाँ के बच्चों की तरह चिडियाँ के बच्चे भी जव  उडना सीख जाते है और खुद ही दाना खोज कर चुगने लगते है तब चिडिया के बच्चे घोसला छोड कर फूर्र हो जाते है ।
बदला कुदरती कानून 
आज पुरुष के मुकावले स्त्रियों की संख्या का अनुपात बहुत कम है ।जिसे देखते हुए समाज  और सरकार मिल कर बेटी बचाओ आंदोलन चला रहे है । वही कुदरत ने भी अपने कानून मे बदलाव किया है संतुलन बनाने के लिए ' अब लडको से जादा लडकीयाँ पेदा हो रही है । लोग लडका पैदा होने के इंतजार मे गर्भ निरोध नही कराते और हर वार लडकी ही होती है दो तीन लडकियों के बाद फिर कही जाकर  आखिरी मे लडको के जन्म होते है ।
उदाहरण_पालतू पशुओ मे भैंस की जरूरत दूध के लिए जादा होती है । इसलिए कुदरत भी मादा भैंस को ही अधिक जन्म देती है । जबकी भैसा (पडा) बहुत कम पैदा होते है उनमे से भी बहुत मर जाते है क्योंकि उनकी जरूरत भी नही होती है ।सौ भैंसो के अनुपात मे बडी मुश्किल से दो या चार भैसा पाए जाते है । यह कुदरत का ही कमाल है ।
मन चाही सूरत का बच्चा पैदा कर सकती है माँ !

महारानी अवंतीबाई लोधी

वीरंगना रानी अवंतीबाई
प्रथम आजादी की लडाई की वीरंगना रानी अवंतीबाई लोधी ' रानी लक्ष्मीबाई और रानी दुर्गाबती की श्रेणी मे आती है ।पर  उन्हें बहुत कम लोग ही जानते है । इसका कारण  है की अवंती रानी को इतिहास मे संमान नही मिला ।लेकिन पिछ्ले दशको मे खोजी लेखको ने इतिहास के बिखरे पन्नों से रानी अवंतीबाई लोधी का इतिहास  इकट्ठा किया और रानी को समाज के सामने प्रकाशित किया है । मध्य प्रदेश के जवलपुर  आदि शहरो मे स्मारक के रूप मे रानी अवंतीबाई की प्रतिमाए स्थापित हुई है । भरतिय डॉक विभाग ने भी सन 2001 मे रानी अवंतीबाई लोधी के नाम पर डाक टिकिट  जारी किया था ।  मध्य प्रदेश् के शिक्षा पाठय क्रम मे भी  रानी अवंतीबाई लोधी पर  पाठ  जोडागया है ।
रानी अवंतीबाई लोधी का जन्म 1831 मे मध्य प्रदेश के सिवनी जिले मे मनकेडी गाव के जमीदार जुझार सिह के घर हुआ था । उनका विवाह रामगढ (मडला ) रियासत के राजकुमार बिक्रम सिंह के साथ हुआ था । जव बिक्रम  सिंह राजा बने  तो वह धार्मिक प्रवृती के होने के कारण  अपना  समय पूजा पाठ मे अधिक लगाते थे एसी स्थित मे रानी ही राज्य सभालतीं थी उनके दो पुत्र थे ।
सन1952 मे अंग्रेजो ने. कोर्ट अॉफ  अवर्डस ' कानून के तहत राजा बिक्रम को पागल और बच्चों को नाबालिग घोसित कर रामगढ रियासत पर अधिकार करने लगे जिसका रानी ने बिरोध किया ।1954 के आसपास राजा विक्रम की स्वभाविकमृत्यू हो गई ।
सन 1858 मे अग्रेजो ने युद्ध करके रामगढ का किला पर कब्जा कर लिया ।रानी अवंतीबाई ने पढोसी राजाओ के पास शरण ले ली और जमीदारो एवं पढोसी राजाओ के साथ मिलकर  अंग्रेजो के बिरुध 'देवहागढ' युध किया । इस युद्ध मे रानी अपनी तलवार से अंत तक  अंग्रेजो को काटती रही ।रानी घोडे पर बैठकर लड रही थी ।यह युद्ध एक पखवाडा चला पर रानी ने हार नही मानी जव रानी के पास गिने चुने सेनिक ही बचे तब रानी ने समझ लिया कि अब जरूर  अंग्रेज  उसे बंदी बना लेगे । इससे पहले की रानी को दुश्मन बंदी बनाते ' रानी अवंतीबाई ने अपनी ही तलवार से वीर गती पा ली ।
मध्य प्रदेश के मंडला मे नारायणगंज के पास रानी अवंतीबाई लोधी का किला आज भी है । जो रामगढ का किला के नाम से जाना जाता है । उस समय रामगढ रियासत का विस्तार अमरकंटक तक था । अब  इस राज का बहुत सा भाग नर्मदा नदी पर बने बरगी बॉध के पानी मे डूव जाता है । 
मध्य प्रदेश सरकार इस किले को पर्यटन स्थल  का स्थान बनाकर बहुत सी बिदेशी मुद्रा कमा सकती है  । क्योंकि इस किले के पास बरगी डेम का पानी होने से इस किले की सुंदता को चार चॉद लग जाएगे ।

चूना उघोग, कम लागत, आधिक मुनाफा

  आज भारत मे 75 पैरेंट लोग पान में जो चुना खाते है।  इस चूने को बनाना और इस तरह की डिब्बी में भरकर बेचने वाले लोग भारी मुनाफा कमाई करते है।