मंगलवार, 2 मई 2017

राम जन्म भूमि पर कब बनेगा मंदिर ।

हिदुस्तान हिन्दू प्रधान देश है । हिन्दू धर्म का आधार और केंद्र राम है । रामायण हिदूओ का मुख्य धर्म ग्रंथ है ।हर हिंदू सुबह उठकर जिस राम का नाम लेता है उस भगवान राम का मंदिर राम की जन्म भूमि पर  अयोध्या मे नही है यह बडी शर्म की बात है । भारत के बाकी सब मंदिर बेकार है जब तक राम जन्म भूमी पर मंदिर नही है तब तक सभी मंदिरो का कोई मूल्य नही है ।
इतिहास गवाह है की अयोध्या मे ही राम की जन्म भूमी है ।न्यायालय ने भी फैसला कर दिया ।वहाँ पहले मंदिर था इस बात के सारे सबूत है । मुस्लिम भी मंदिर बनाने का सर्मथन कर रहे है । तो फिर मंदिर निर्माण मे देरी क्यों हो रही है । आखिर कब तक चलेगा यह मुद्दा 'कब तक होगी राम जन्म भूमि पर राजनीती ' भारत का हिंदू सरकार की तरफ देख रहा है की आखिर कब करागी सरकार राम भूमि पर मंदिर का निर्माण ' कब बनेगा मेरे राम का मंदिर । मोदी सरकार का कहना है की 2022 तक हर गरीब हिदुस्तानी को पक्का मकान बना कर देगी सरकार ' क्या करेगे भारत के गरीब इस मकान का क्योंकि उनका भगवान बेघर हो और वह पक्के मकान मे रहे यह बात नही बनेगी । इस समय सभी परिस्थितिया अनुकूल है मोदी और योगी का राज है इस समय मंदिर नही बना अयोध्या मे राम की जन्म भूमी पर तो फिर तो फिर कब बनेगा ?

सोमवार, 1 मई 2017

महुआ पेड़ का महत्व ।

वनवासी जन जीवन मे महुआ के पेड़ का बहुत महत्व है । महुआ इनके लिए आय का एक साधन है । मध्य भारत के जंगलो मे अधिक पाया जाने वाल महुए का पेड फागुन माह मे फूलता है । इसके पेडो से एक माह तक रोजाना महुआ के फूल झडते है । इन फूलो की मादक गंध से जंगल का बातावरण महकर मदमस्त हो जाता है । वनवासी लोग  इन महुआ के फूलो को हाथ से बीन कर  रोजाना इकटठा करते है । महुआ के पेड के नीचे रोज सुवह दो तीन तगाडी महुआ फूल मिलते है । वनवासी इन महुआ फूलो को सुखाकर बाजार मे कुंटलो से बेचते है । और  इनका उपयोग खाने मे भी करते है ।एवं इन फूलो से मदिरा भी बनाई जाती है ।
महुआ के फल_ गुलेदा ' जून माह मे पक जाते है जै खाने मे बहुत ही स्वादिष्ट होते है ।जगली लोग  और जंगली जानवर ही इनका स्वाद ले पाते है । शहर के लोगो ने तो महुआ फिल्म का गाना जरूर सुना होगा 'और महुआ का फूल भी देखा होगा पर  उनहे असली महुआ के फल का स्वाद शायद कभी नशीव नही हुआ होगा । क्योंकि यह फल बाजारो मे नही बिकते है । महुआ के फल की गुठली का भी व्यापार होता है इसे गुली कहते है इसका तेल निकलता है जो खाने के उपयोग मे आता है ।
महुआ नाम की एक पुरानी फिल्म है । महुआ पर स्थानीय भाषाओं मे लोकगीत भी बन है जो बहुत लोकप्रि है ।
एक लोकगीत के बोल कुछ इस प्रकार है _गोरी चढ गई पठार ' गोरी चढ गई पठार ' लेके गुटटू महुआ बीनने ।

शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

गोवर से रूपये कमाए 'ग्रामीण ।

गॉव के हर घर मे दुधारू पशु जरूर पाले जाते है । पहले तो इन पशुओं के गोवर का उपयोग कंडे उवले बनाने मे होता था जो खाना पकाने के लिए चुल्हे मे जलाने के काम  आते थे । पर  अब गॉवो के घरो मे गैस चुल्हे आ जाने के कारण मवेशी का गोवर कूडे के ढेर पर फेका जाता है ।गॉव के रास्तों गली चोराहो के किनारे जगह जगह लगे यह गोवर कूडे के ढेर गॉव को गंदा करते है । गॉव को साफ सुथरा रखने और गोवर कूडे का उपयोग करने का एक मात्र  उपाय यह है की इससे बर्मी कपोस्ट गोवर की खाद बनाई जाए । इसके लिए गॉव के सभी पशुओं वाले   घरो मे पक्के ईट के टेंक बनाए जाए जिसमे पशुओं की सार वखरी का गोवर घास भूसा का कचडा जमा किया जाए जब यह टेंक फुल भर जाए तो इसमे पानी भर कर केचुए छोड दिए जाए और  ऊपर से घास से इस टेक को ढक दिया जाए । इसके बाद तीन चार माह मे खाद बनकर तैयार हो जाता है । किसानो के लिए तो सरकार गोवर की खाद बनाने के पक्की टंकी बनाने के लिए अनुदान भी दे रही है । गेर किसान भी अपने खरचे से यह टंकी वना सकते है इसमे अधिक खर्च नही लगता सिंगल  ईट की पॉच फिट  ऊची दीवार चारो तरफ बनाई जाती है इसकी लंबाई चोडाई अपने गोवर के हिसाव से जादा कम रखी जा सकती है । गोवर की खाद बनाने की बिधि भी बहुत सरल है ।
गोवर की जैविक खाद किसान खुद बनाकर  अपने खेत मे उपयोग कर सकता है जिससे रासायनिक खाद खरीदने का खरचा बचेगा । गेर किसान भी यह गोवर की खाद बनाकर किसानो को बेच कर कुछ रूपये कमा सकता है । अब  आप सोचेगे की यह खाद खरीदेगा कौन  अजी आने वाले समय मे जैविक खाद की माँग बढने की बहुत संभावनाए है ।क्योंकि रासायनिक खेती के दुष्परिणाम सामने आने से अब किसान धीरे धीरे रासायनिक खेती छोडकर जैविक खेती की तरफ बढ रहे है ।जैविक खाद  और जैविक बिधि से पैदा किये गए कृषि उत्पाद गेहू ' सब्जियॉ ' फल ' दाले ' गुड  आदि बहुत मॉग है । स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग  जैविक खादय सामंग्री ढूड ढूड कर खरीदते है । और यह जैविक कृषि उत्पाद दुगनी कीमत पर बिकते है ।आज कुछ जागरूक लोग  आयुर्वेद की दबाए और  जैविक खादय पदार्थों का ही सेवन कर रहे है ।
मित्रो भविष्य  आयुर्वेद  और जैविक का ही है ।अब जल्द ही रासायनो का जमाना जाने वाला है ।इसलिए जैविक के क्षेत्र मे पेर जमाने का यह  अच्छा समय है ।

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

स्मार्ट फोन और वाइक से अॉखो को खतरा ।

आदमी के लिए अॉखे कुदरत की आनमोल देन है ।अॉखे है तो यह सुन्दर संसार है वरना अंधेरा है ।इसलिए अॉखो के प्रति सबधान रहना बहुत जरूरी है ।इस युग मे मोवाइल  और मोटरसाइकिल  जीवन का अहम हिस्सा बन गए है इनके विना जीवन का पहिया नही चलता है । पर  इनका साबधानी से उपयोग करना ही आदमी के लिए हितकर है । नेत्र विशेषज्ञो के अनुसार वाइक  और स्मार्ट फोन लोगो की अॉखो पर धातक  असर डाल रहे है ।
स्मार्ट मोवाइल फोन का उपयोग आज बहुत हो रहा है ।जमाने की अॉख मोवाइल पर थमी है ।हर कोई अपने मोवाइल पर व्यस्त दिखता है अगर किसी से पूछो कि क्या कर रहे हो ' तोवह कहता है वाटस अप ! बहुत देर तक या देर रात तक मोवाइल पर  अॉखे लगाना हानीकारक है एसा करने से अॉखो की रोशनी कम होती है । इसलिए स्मार्ट फोन का कम या समयक  उपयोग करना चाहिए ।
वाइक का उपयोग _ नंगी अॉखो से वाइक चलाना अॉखो लिए मेहगा पडता है ।रास्ते की धूल ' धूआ 'कंकड ' मच्छर हवा अॉखो से टकराती है ।जिससे अॉख मे जलन चुभन महसूस होती है और  अॉखे लाल हो जाती है । आज  अॉखे खराव होने का सबसे बडा कारण नंगी अॉखो से वाइक चलाना ही है ।इसलिए वाइक चलाते सयम चश्मे का उपयोग करना बहुत जरूरी होता है ।
टीवी और लेपटॉप का उपयोग _ कही ना कही टीवी और लेपटॉप का पर भी लंबे समय तक  अॉखे स्थर रखना हानीकारक है । इन चीजो का उपयोग करते समय बीच बीच मे इधर  उधर देखने से भी अॉख को राहत मिलती है ।और काला या हरे रंग का चश्मा पहन कर भी इन चीजो का उपयोग करने से अॉखे सुरक्षित रहती है ।
👀👀☝👓🚪📱📺🌈

गुरुवार, 30 मार्च 2017

भविष्य मे खेती का रूप ।

आज परंपरागत खेती करना घाटे का सोदा शिद्ध हो रहा है । इसलिए आने वाले समय मे खेती का स्वरूप बदलेगा 'और खेती मे यह बदलाव समय की मॉग है ।
बैज्ञानिक खेती _आगामी समय मे वैज्ञानिक खेती ही लाभदायक शिद्ध होगी ।खेती वाडी के सभी काम वैज्ञानिक तरीको से होगे एवं कृषि वैज्ञानिकों की सलाह से ही खेती का हर काम करना ही कृषक के लिए हितकर होगा ।
रासायन रहित खेती _आज खेती मे रासायनो के दुष्परिणाम सामने आ रहे है ।इसलिए भावी समय मे रसायन मुक्त खेती ही होगी । खेतो मे गोबर की देशी खाद 'और  आयुर्वेद कीटनाशक दवाओं का ही अधिक उपयोग होगा ।
जल प्रबंधन _ आने वाले वर्षों मे बरसा कम होने से भूमी गत जल स्तर घटेगा । इसलिए खेत का पानी खेत की जमीन मे ही रहे इसके लिए खेतो मे मेड बंधान ' सोखता गड्ढे ' तालाव  आदि के इतजाम करने होगे ।
पोली हाउस खेती _ खेती मे आने वाली सभी समश्याओ को कम करने का तरीका है पोली हाउस मे खेती करना । पोली हाऊस मे तापमन नियंत्रण करके कम पानी कम जमीन पर बारह महिने किसी भी मोषम मे कोई भी फसल लगाई जा सकती है ।और फसल  उत्पादन लिया जा सकता है । इन सुविधाओ को देखते हुए पोली हाउस खेती का दायरा वढ रहा है ।डिजिटल खेती _ रिमोट कंट्रोल से चलेगे खेतो मे ट्रेक्टर ' भारत सहित दुनिया के कुछ देशो मे यह तकनीक विकशित हो गई  है । अब कंपनीयॉ एसे ट्रेक्टर बनाने जा रही है जिसे चलाने के लिए चालक की जरूरत नही पडेगी ।इसमे काम के हिसाव से एक बार प्रोग्रामिंग सेट करने के बाद  उसे खेत मे काम करने के लिए छोड दिया जाता है और टेक्टर  खूद ही काम पूरा होने पर  अपने आप खडा हो जाता है ।
ड्रोन कीटनाशक यंत्र _ आने वाले समय मे खेतो मे कीटनाशक दवाओ का छिडकाव खेतो मे ड्रोन करेगे ।यह प्रयोग हुआ है जो सफल रहा है । हालाकी आभी तक भारत मे किसी कपनी ने यह ड्रोन कीटनाशक यंत्र बनाकर बाजार मे नह  उतारा है । पर यह जल्दी बाजार मे आएगा अभी कुछ किसानो ने खुद ही अपने काम के लिए एसे यंत्र बनाए है ।जिनसे दिनो का काम घंटो मे होता है ।और किसान  अपने खेत की मेड पर  बैठकर ड्रोन को रिमोट से खेत की फसल के ऊपर  उडाता रहता है और खेत मे दबा सिचाई होती रहती है । यह तकनीक किसानो को बहुत भा रही है ।भविष्य मे इसके लोकप्रिय होने की बहुत संभावना है ।

सी सी टीवी  केमरे से खेत की निगरानी _ अनेकों किसान  अब खेतो मे सी सी टीवी केमरे  लगवा कर घर बैठे खेत की देखरेख कर रहे है ।  आने वाले समय मे इस तकनीक से खेतो की रखवाली होगी इसमे खेत कर हमेशा एक नोकर  रखने की झंझट से छुटकारा मिल जाता है ।और नोकर के खरच से कम पैसे मे खेत की निगरानी होती है । खेत मे कही कोई गडवडी दिखने पर तुरंत वाइक से किसान खेत पर पहुज जाता है ।

रविवार, 26 मार्च 2017

सफलता पाने का मंत्र !

मंत्र _ क्या ' क्यों ' कैसे ' कब ' कितना ' !

क्या _क्या करें ' क्या काम करें । हर  आदमी के लिए जीवन जीने के लिए कुछ न कुछ काम करना तो जरूरी होता है । पर क्या काम करे ।यह निश्चित करना भी बहुत जरूरी है ।अपनी आत्मा से पूछे ।और  अपनी योग्यता 'क्षमता के अनुसार काम का चुनाव करे । यह पक्का निश्चय करे की हमे यह काम करना है । इसके बाद ही काम शुरु करे ।
क्यों _क्यों करें ।हम यह काम क्यों करना चाहते है । इससे हमे क्या मिलेगा । हम क्या पाना चाहते है । दोलत  इज्जत शोहरत ताकत मोक्ष  आदि मे से क्या हम पाना चाहते है । इस काम के पीछे हमारा उद्देशय क्या है ।क्योंकि हर काम के पीछे कोई ना कोई उद्देश्य जरूर होता है । इसलिए यह स्पस्ट होना चाहिए की इस काम के पीछे हमारा यह मकसद है और  इस मकसद के लिए हम यह कर रहे है । तभी काम करें ।
कैसे _कैसे करें । इस काम की बिधि क्या है ।इसका तरीका क्या है । यह काम कैसे होगा । यह समझने के बाद जव पूरा यकीन हो जाए की यह काम  इस तरह से होगा और मे इसे कर सकता हू । तभी वह काम करें ।
कब _ कब करें । किसी भी काम का एक समय  एक  आयु होती है ।इसलिए हय निश्चित करें की यह काम हमे कब करना है । पढाई पूरी होने के बाद या शादी के बाद या 18 साल की आयू होने पर हमे यह करना है । अपने काम का समय निश्चित करें । और  उसे याद रखे और समय  आने पर वय काम करें ।
कितना _ कितना करें । कितना काम करना है । हर काम की एक सीमा और समय  अबधि होती है । इसलिए अपने काम की एक सीमा निरधारित होनी चाहिए ।कि हमे  इतना ' यहाँ तक काम करना है । इसके बाद ही काम  आरंभ करें ।
नोट _ सफलता के इस मंत्र के इन पॉच शब्दों के उत्तर पाए अपने आप से और  उन्हें हमेशा याद रखकर काम करने पर100% सफलता मिलती है । इस मंत्र से अनेक लोगो ने सफलता के शिखर पाए है ।

शनिवार, 25 मार्च 2017

बेरी के बेर और आय के ढेर !

फरवरी महिने मे बेर का सीजन  आते ही ही बेरी के झाडो पर पके हुए बेर लद जाते है ।और बेर के पके हुए फलो की झडी लग जाती है ।गॉव दिहात मे बेरो के झाडो के नीचे पके हुए खट्टे मीठे बेर के फल बिछे रहते है और लोग  इन फलो को अपने पैरो तले कुचलते हुए इनके  उपर से निकल जाते है पर यह लोग  इनकी कीमत नही समझते है ।अगर  इन बेरो को बच्चों से रोज बिनवा कर इकट्ठा कर लिया जाए और  इनहे धूप मे सुखालिया जाए ।और फिर अॉफ सीजन मे शहर के किसी बेरो के खरीददा को बेचा जाय तो यह बेर 20 रू किलो तक बिकते है । क्योकि अॉफ सीजन मे लोग बेरो को उवाल कर खाना बहुत पसंद करते है । एक बेर के झाड से 50 से 200 किलो तक बेर पूरे सीजन मे मिलते है ।जिस ग्रामीण जन के पास पास बेरी के दो चार झाड हो वह  एक सीजन मे बेर से 10_15 हजार रुपय सहज की कमा सकता है । और बेर  उसकी  आय का एक छोटा ही सही पर जरिया बन सकता है । तो फिर देर किस बात की करे बेर  इकट्ठे ।
अगर बेर के झाड न भी हो तो इनहे बाजार से बडे आकार के बेर खरीद कर खाए और  इनकी गुठली इकटठी रख ले और बारिश शुरू होने के बाद जुलाई मे इन बीजो को माकान के पास की खाली जगह पर जमीन मे एक  इच निचे गाड दे ।इसके बाद तो यह बगेर देखभाल के ही हो जाते है और दो साल मे फल देने लगते है । बाजार मे बडे आकार के बेर के फल 50 रू किलो तक ताजे पके बिकते देखे जाते है ।
कहीं कहीं पर तो एप्पल बेर की खेती हो रही है यह बेर सेव के आकार का होता है और  इसमे गुठली नही होती है । अन  ऊपजाऊ और सूखी जमीन पर बेर की खेती लाभदायक सावित हो सकती है क्योंकि बेर के पेड को जादा पानी की जरूरत नही होती । बेर ही नही किसी भी छोटी पत्ती बाले कॉटेदार पेड पौधों को बहुत कम पानी की जरूतत पडती है ।और  इतना पानी यह पौधे हवा ओस से खीच लेते है । तभी तो सूखे रेगिस्तान मे कॉटेदार पौधे हरे भरे रहते है ।
तो है ना बेरी के बेर  आय के ढेर '🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒

चूना उघोग, कम लागत, आधिक मुनाफा

  आज भारत मे 75 पैरेंट लोग पान में जो चुना खाते है।  इस चूने को बनाना और इस तरह की डिब्बी में भरकर बेचने वाले लोग भारी मुनाफा कमाई करते है।