शनिवार, 5 नवंबर 2016

जंगल का भाग्य उदय ।

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🌳🌲🌴🌲पिछले दशकों मे जंगलों को बचाने के लिए भारत मे बहुत प्रयास किए गए ।यहाँ तक की चिप्पू आंदोलन तक चले जिनमे लोग पेड़ो को कटने से बचाने के लिए पैडो से चिपक जाते थे । पर  असफलता ही हाथ लगी और जंगल अधाधुंध कटते रहे ।क्योंकि उस समय ग्रामीण जन जंगलो पर ही निरभर होते थे  । उनके अधिकंश काम लकड़ी से ही पुरे होते थे ।
लकड़ी की काठी और काठी का घोडा _जैसे कृषि यंत्र हल ' बक्खर ' बैलगाडी ' आदि लकडी से ही बनते थे ।गाँव मे मकान भी लकडी से ही बनते थे ।फनीचर  और घर की बहुत सी वस्तुएं लकडी की ही उपयोग होतीं थी । मकानो के चारो तरफ  और खलिहानो की बागुड भी लकडी व कॉटेदार झाडियो से ही होतीं थी । चुल्हा जलाने मे भी लकडी का ही उपयोग होता था ।यहॉ तक की लोग दॉत साफ करने के लिए भी लकडी की दतून का उपयोग करते थे ।
बदलाव की बेला _अब गांव के जन जीवन मे भी समय के साथ बदलाव  आया है । अब कृषि के काम ट्रेक्टर से होते है । मकान पक्के बनने लगे है । बागुड की जगह तार फेंशिंग होने लगीं हैं ।लकडी के फर्नीचर और खिडकी दरवाजो एवं लकडी की सभी वस्तुओ की जगह  अब लोहे और प्लास्टिक के सामानो ने ले ली है ।लकडी के चुल्हो की जगह  अब गेस चुल्हे आ गए है । दतून की जगह  अब लोग बाबा रामदेव के मंजन से दॉत साफ कर रहे है ।
कागज  उधोग मे बॉस की लकडी की भारी खपत होती है जो अव कागज के घटते उपयोग के साथ बहुत घट जाएगी ।
जंगल मे मंगल _ दिन प्रति लकडी की घटती उपयोगिता को देखते हुए ' अव यह कहा जा सकता है की जंगलो के भाग्य उदय हो रहे है । और वह दिन दूर नही जब भारत के जंगल भी अफ्रीका के जंगलो की तरह घने होगें ' अब जंगल काटने वाले लक्कड चोर रहे और न ही लकडहारे बचे है । अव  एसा सुहावना समय है जंगलो के लिए जिसमे जंगल दिन दूने और रात चौगनी बढोत्री करेगे और जंगल मे मंगल होगा ।

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