लोग पाना तो चाहते ' पर कुछ खोना नही चाहते । इस उलटे नियम से कुछ पाना असंभव है ।
हर चीज को पाने के बदले मे कुछ न कुछ कीमत तो जरूर ही देना पडता है । जो मेहनत ' समय ' वस्तु आदि कुछ भी हो सकती है ।किसी भी व्यक्ति से कुछ पाने से पहले उसे कुछ देना पडता है । चाहे हम अपनी बातो से उसे भरोष दे ' लोभ लालच दे ' या अपना समय दे कुछ भी दे पर देना जरूर होगा । जब हमारे दुवारा दी जाने वाली चीज को सामने वाला व्यक्ति स्वीकार कर लेता है । तव हमारे लिए कुछ आदान करने का मार्ग खुलता है । और तब हम पाने के अधिकारी होते है । अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम समने वाले से कुछ आदान करे या न करे ।और हमारी छमता पर यह निर्भर करता है कि हम प्रदान से कम आदान ले या प्रदान के बराबर आदान ले या प्रदान से अधिक का आदान करें ।
इस आदान प्रदान के विनियम मे हमे धन अथवा कोई भी इछित वस्तु का आदान करने से पहले कुछ प्रदान करना जरूरी होता है ।
उदाहरण: दुआपुर युग मे सुदामा नामक वृहाम्ण जव दुवारका के राजा कृष्ण के पास धन मागने गया था । तव सुदामा अपने साथ एक चावल की पोटली कृष्ण को प्रदान करने के लिए ले गया था ।जिस भेट को कृष्ण ने स्वीकार किया था ।और बदले मे सुदामा को बहुत सारा धन दिया था ।
दुशरा उदाहरण: मे एक एसे सज्जन को जानता हू । जिनका यह उसूल है कि जब उनहे किसी भी आदमी से कोई काम लेना होता है ' तब वे उस आदमी को आदर से अपने घर पर बुलाकर बेठाते है और स्वागत मे उसके सामने मिठाई की थाली पेस करते है ।एवं मिठाई खिलाने के बाद वे उससे कम की बात करते है । जिसमे वे सफल रहते है । उनके इस स्वागत को लगभग 70% लोग स्वीकार कर लेते है ' और फिर मिठाई के दबाव मे आकर इनका काम करने से इनकार नही कर पाते और काम कर देते है ।
कुछ लोग जो इन सज्जन से भी जादा चतुर होते है वे लोग 'डाविटीज' का बहाना बना कर मिठाई खाने से इनकार कर देते है ।और वह इनके दबाब मे नही आते एवं स्वतंत्र रहते है 'वे चाहे तो इनका काम करे या न करे ।
इस दुनियॉ मे प्रदान से बिना मागे मोती मिलते है । प्रदान के बिना मागने पर भीख भी नही मिलती है ।
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