चीन के त्चयु प्रदेश मे 605ईशा पूर्व लाओत्से नाम के आदमी का जन्म हुआ था । वह एक सरकरी लाइब्रेरी मे काम करता था 'जहाँ उसने 40 साल तक काम किया । लाओत्से अपने जीवन मे बहुत ही कम बोला वह मोन जादा रहता था । कृष्ण और राम की ही तरह महाज्ञानी था लाओत्से पर उसके पीछे कोई बडा धर्म नही बना क्योंकि उसका संदेश बहुत अलग है । लाओत्से कहता है _मे उसका नाम नही जानता 'वह 'तत'है उसे पाने के लिए कुछ करना नही है वस शून्य हो जाना है । लाओत्से पिंगलो पहाड पर जाना चाहता था अपने आप को बरफ मे गलाने के लिए पर लोग उसे नही जाने देते थे । बताया गया है की एक यात्रा के दैरान जव लाओत्से 'क्वानयिन' के एक चुंगी नाके से गुजर रहा था तब वहां के अधिकारी ने उसे रोका और कर देने को कहा तो लाओत्से ने कहा की मेरे पास पैसे तो है नही ' लेकिन अधिकारी ने कहा नही एसे नही जाने देगे कुछ ना कुछ तो दैना ही होगा । तब लाओत्से ने उस उस अधिकारी को अपना ज्ञान दिया जो उस अधिकारी ने तीन दिन तक लिखा ' फिर लाओत्से को बासर जाने दिया।
उस अधिकारी का नाम च्युंगत्सी था जिसने लाओत्से के बोध बचनो को लिखा था । यह बोध बचन आज चीन मे 'ताओ ते चिंग ' जो चीन के ताओ धर्म का ग्रंध है के रूप मे उपलब्ध है ।इस किताव का पहल बोध बचन है की _ जिस रास्ते के बारे मे बात की जा सके वह रास्ता सनातन नही है ।ताओ पहले चीन का दर्शन था बाद मे धर्म बन गया । इसका सारा ईनाम उस नाके के अधिकारी को देना चाहिए जिसने ज्ञान की इस संपत्ति को लुप्त होने से बचा लिया बरना आज कोई लाओत्से को नही जानता और न चीन मे ताओ धर्म होता और नाही ताओ ते चिग नाम की कोई किताव होती ।
ताओ ते चिंग और लाओत्से
उस अधिकारी का नाम च्युंगत्सी था जिसने लाओत्से के बोध बचनो को लिखा था । यह बोध बचन आज चीन मे 'ताओ ते चिंग ' जो चीन के ताओ धर्म का ग्रंध है के रूप मे उपलब्ध है ।इस किताव का पहल बोध बचन है की _ जिस रास्ते के बारे मे बात की जा सके वह रास्ता सनातन नही है ।ताओ पहले चीन का दर्शन था बाद मे धर्म बन गया । इसका सारा ईनाम उस नाके के अधिकारी को देना चाहिए जिसने ज्ञान की इस संपत्ति को लुप्त होने से बचा लिया बरना आज कोई लाओत्से को नही जानता और न चीन मे ताओ धर्म होता और नाही ताओ ते चिग नाम की कोई किताव होती ।
ताओ ते चिंग और लाओत्से
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