हिंदू परंपरा मे क्वॉर मास के कृष्ण पक्ष का पखवाडा पित्रो को सर्मपित है ।यह पाख कडवे दिनों के रूप मे याद किया जाता है ।इस पाख मे हिंदू धर्म के लोग अपने पुरखो को नदी नालो मे जाकर स्नान करते हुए जल अर्पण करते है ' और घर पर पुरखो के नाम से काग 'कुत्तो को खीर पकवान खिलाते है ।
यह सब देखकर मेरे मन मे प्रश्न उठता है कि सावन भादो की भारी बरसा के बाद भी पुरखे प्यासे कैसे रह जाते है ' शायद वे संतान के हाथ का ही पानी पीते हो । या फिर यह पित्र पाख उन लोगो के लिए हो जो लोग अपने जिंदा मॉ बाप की सेबा नही कर पाते और उनके मॉ बाप भूखे प्यासे ही मर जाते है ।जिसका पश्चाताप करने के लिए लोग इस पाख मे अपने पुरखो को खिलाते पिलाते है । और अपनी आत्मा को संती देते है ।
हिंदू सस्कृति मे आदमी की मृत्यु के बाद उसकी आत्म की शंती के इतने बिधान है कि यदि सभी बिधानो को नियम अनुसार दान पुन्य भोज से पूरा किया जाय तो उस परिवार की सारी जमापूजी और पेत्रिक संपत्ति मरने वाले के उपर ही ही खर्च हो जाएगी ।
आदमी के अंतिम संस्कार के बाद ' गंगा मे अस्थि बिसर्जन ' मृत्यु भोज ' छहमासी भोज ' श्राद आदि ।
मृत्यु भोज
मैने सुना है की एक मृत्यु भोज के दोरान जव लोग पाडाल मे भोजन कर रहे थे उसी समय मरने बाला आदमी प्रकट हो गया और लोगो से पूछने लगा भाई कैसी बनी है मिठाई रायता स्वादिष्ट है या नही ' यह देख सुनकर लोग भूत भूत चिल्लाकर भागने लगे और देखते ही देखते पंडाल खाली हो गया । और फिर वह आदमी भी गायव हो गया ।
आत्म की शंती के बिधानो की सच्चाई ।
जीवन एक जलते हुए दिये के समान है ।जिसमे शरीर दिया है और आत्म ज्योति है । आदमी के मरने के बाद मिट्टी का दिया जमीन पर ही पडा रह जाता है और ज्योति रूपी आत्मा आकाश मे बिलीन हो जाती है । मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार का बिधान तो सर्व मान्य है । इसके बाद मृत आत्मा की शंति के लिए किये जाने बाले सभी कर्मकांड व्यर्थ है । क्योंकि इनका कुछ भी असर मृत आत्मा पर नही होता । यह सब तो पंडित पुरोहितो ने झूठा प्रपंच रचा है ' यह एक सडियंत्र है जिसमे लोगो को मूर्ख बनाकर उनसे दान पुन्य भोज आदि करवाकर उनहे लूटा जाता है ' और उनकी धन संपत्ति बरबाद कराई जाती है ।
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यह सब देखकर मेरे मन मे प्रश्न उठता है कि सावन भादो की भारी बरसा के बाद भी पुरखे प्यासे कैसे रह जाते है ' शायद वे संतान के हाथ का ही पानी पीते हो । या फिर यह पित्र पाख उन लोगो के लिए हो जो लोग अपने जिंदा मॉ बाप की सेबा नही कर पाते और उनके मॉ बाप भूखे प्यासे ही मर जाते है ।जिसका पश्चाताप करने के लिए लोग इस पाख मे अपने पुरखो को खिलाते पिलाते है । और अपनी आत्मा को संती देते है ।
हिंदू सस्कृति मे आदमी की मृत्यु के बाद उसकी आत्म की शंती के इतने बिधान है कि यदि सभी बिधानो को नियम अनुसार दान पुन्य भोज से पूरा किया जाय तो उस परिवार की सारी जमापूजी और पेत्रिक संपत्ति मरने वाले के उपर ही ही खर्च हो जाएगी ।
आदमी के अंतिम संस्कार के बाद ' गंगा मे अस्थि बिसर्जन ' मृत्यु भोज ' छहमासी भोज ' श्राद आदि ।
मृत्यु भोज
मैने सुना है की एक मृत्यु भोज के दोरान जव लोग पाडाल मे भोजन कर रहे थे उसी समय मरने बाला आदमी प्रकट हो गया और लोगो से पूछने लगा भाई कैसी बनी है मिठाई रायता स्वादिष्ट है या नही ' यह देख सुनकर लोग भूत भूत चिल्लाकर भागने लगे और देखते ही देखते पंडाल खाली हो गया । और फिर वह आदमी भी गायव हो गया ।
आत्म की शंती के बिधानो की सच्चाई ।
जीवन एक जलते हुए दिये के समान है ।जिसमे शरीर दिया है और आत्म ज्योति है । आदमी के मरने के बाद मिट्टी का दिया जमीन पर ही पडा रह जाता है और ज्योति रूपी आत्मा आकाश मे बिलीन हो जाती है । मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार का बिधान तो सर्व मान्य है । इसके बाद मृत आत्मा की शंति के लिए किये जाने बाले सभी कर्मकांड व्यर्थ है । क्योंकि इनका कुछ भी असर मृत आत्मा पर नही होता । यह सब तो पंडित पुरोहितो ने झूठा प्रपंच रचा है ' यह एक सडियंत्र है जिसमे लोगो को मूर्ख बनाकर उनसे दान पुन्य भोज आदि करवाकर उनहे लूटा जाता है ' और उनकी धन संपत्ति बरबाद कराई जाती है ।
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